बी एस-सी - एम एस-सी >> बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीएससी सेमेस्टर-1 जन्तु विज्ञान
प्रश्न- कोशिका सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? प्राणि कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए तथा पाँच कोशिका उपांगों के मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कोशिका सिद्धान्त किसे कहते हैं?
2. जन्तु कोशिका की संरचना में पाये जाने वाले अंगकों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
3. यूकैरिओटिक कोशिका का एक नामांकित चित्र बनाइए। वर्णन की आवश्यकता नहीं है।
उत्तर -
कोशिका सिद्धान्त
(Cell Theory)
सर्वप्रथम सन् 1665 में रॉबर्ट हुक (Robert Hooke) ने एक साधारण कोटि के सूक्ष्मदर्शी से कॉर्क के पतले काट का अध्ययन किया और देखा कि कॉर्क की रचना छोटे-छोटे अनेक खाली कोष्ठकों (empty chambers) से होती है। कॉर्क के खाली कोष्ठक ठीक उसी तरह दिखाई पड़ते हैं जिस तरह मधुमक्खी के छत्ते (honey comb) के कोष्ठक। इन खाली कोष्ठकों को राबर्ट हुक ने कोशिका का नाम दिया। कॉर्क पौधे की छाल से प्राप्त होता है जिसकी कोशिकाएँ मृत होती हैं और उनमें केवल कोशिका भित्ति ही होती है। इस प्रकार हुक ने पहले कोशिका भित्ति ही देखा। जब बाद में उन्होंने जीवित वनस्पतियों की कोशिकाओं का अध्ययन किया तो देखा कि जीवित कोशिकाओं के अन्दर जूस' (juice) भरा होता है। अतः हुक ने पहली बार यह बताया कि जीवों का शरीर कोशिकीय होता है। इसके कुछ साल बाद एन्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (Antony Von Leewenhoek) ने कोशिका की आन्तरिक संरचना का अध्ययन किया और हरी पत्तियों की कोशिकाओं में हरितलवकों (chloroplasts) को देखा। सन् 1839 में परकिन्जे (Purkinje) ने कोशिका के अन्दर पाये जाने वाले जीवित पदार्थ को 'जीवद्रव्य' (protoplasm) नाम दिया। इंग्लैंड के वनस्पति शास्त्री राबर्ट ब्राउन (Robert Brown, 1831) ने कोशिका के अन्दर एक गोल रचना देखी और उसे 'केन्द्रक' (nucleus) नाम दिया। इसके कुछ ही दिन बाद जर्मनी के सुप्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री श्लाइडेन (Schleiden) ने केन्द्रक के अन्दर केन्द्रिका या न्यूक्लिओलस (nucleolus) का पता लगाया। फेलिक्स डुजार्डिन (Felix Dujardin) ने 1835 में कोशिका के अन्दर पाये जाने वाले तरल पदार्थ को 'सारकोड' नाम से सम्बोधित किया जिसे ह्यगो वॉन मोल (Hugo Von Mohl) ने 1838 में प्रोटोप्लास्ट (protoplast) नाम दिया। सन् 1839 में वनस्पतिशास्त्री एम. जे. श्लाइडेन (M.J. Schleiden) तथा जन्तुशास्त्री थिओडार श्वान (Theodar Schwann) ने कोशिका सिद्धान्त (cell theory) प्रस्तुत किया। कोशिका सिद्धान्त के अनुसार -
1. सभी जीवों के शरीर की रचना कोशिकाओं से होती है।
2. कोशिका प्लाज्मा झिल्ली द्वारा सीमित केन्द्रकयुक्त जीवद्रवीय पिण्ड हैं जो जीवों की रचनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई होती है।
3. कोशिका विभाजित होकर नयी कोशिकाओं को जन्म देती है।
4. कोशिकाएँ आनुवंशिक एकक हैं।
एक प्रारूपी जन्तु कोशिका की संरचना में निम्नलिखित भाग दिखाई देते हैं -
1. प्लाज्मा झिल्ली या कोशिक कला (Plasma Membrane or Cell- Membrane) : प्रत्येक जन्तु कोशिका का जीवद्रव्य (protoplasm) चारों ओर से एक अत्यन्त पतली पारदर्शक झिल्ली से घिरा रहता है जिसे प्लाज्मा झिल्ली या इकाई झिल्ली कहते हैं। प्लाज्मा झिल्ली अन्दर एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम के द्वारा न्यूक्लियर झिल्ली से जुड़ी रहती है। यह प्रोटीन तथा लिपिड अणुओं के दोहरे स्तर की बनी होती है। इसमें अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं। यह अर्द्ध-पारगम्य (differentially permeable) होती है अर्थात् केवल एक विशिष्ट आकार और परिमाण के अणुओं को ही कोशिका में आने या जाने देती है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं- (i) प्लाज्मा झिल्ली कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती है। (ii) कोशिका को सुरक्षा प्रदान करती है। (iii) कोशिका में पदार्थों को आने-जाने के लिए माध्यम प्रदान करती है।
2. कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) : कोशिका में प्लाज्मा झिल्ली तथा न्यूक्लियर झिल्ली के मध्य के स्थान को साइटोसोम (cytosome) कहते हैं। यह स्थान एक द्रव से भरा रहता है, जिसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं। कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक के अन्दर भरे हुए द्रव (न्यूक्लियोप्लाज्म) को मिलाकर जीवद्रव्य कहते हैं जो कोशिका का आधारभूत पदार्थ माना जाता है। कोशिकाद्रव्य एक रंगहीन, अल्प- पारदर्शी गाढ़ा तथा चिपचिपा द्रव होता है। यह प्रोटीन, लिपिड, कार्बोहाइड्रेट तथा जल व कुछ अकार्बनिक पदार्थों के बने यौगिकों से मिलकर बना होता है
कोशिकाद्रव्य में पाये जाने वाले अन्तर्वेश (inclusion) को जीवित तथा अजीवित होने के आधार पर दो समूहों में विभक्त किया गया है -
1. कोशिकाद्रव्य की जीवित रचनाओं को कोशिकाद्रव्यी अंगक (cytoplasmic organelles) कहते हैं।
2. इसकी अजीवित रचनाओं को मेटाप्लास्ट कहते हैं।
1. कोशिकाद्रव्यी अंगक (Cytoplasmic Organelles) : कोशिकाद्रव्य में पाये जाने वाले अंगक निम्नलिखित हैं-
(i) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum): प्रायः सभी कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में महीन असंख्य तथा शाखित दोहरी भित्ति वाली नलिकाओं का एक असीमित जाल फैला रहता है। नलिकाओं के इस जाल को अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कहते हैं। इसकी कुछ नलिकाएँ तो प्लाज्मा झिल्ली तथा कुछ न्यूक्लियर झिल्ली में खुलती हैं। अन्तः प्रद्रव्यी दो प्रकार की होती हैं- प्रथम दानेदार अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (rough endoplasmic reticulum) इसकी सीमान्त भित्तियों की बाहरी सतह पर असंख्य राइबोसोम कण (ribosome particles) पाये जाते हैं। द्वितीय चिकनी सतह वाली अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (smooth endoplasmic reticulum) इसकी सीमान्त सतह पर राइबोसोम नहीं पाये जाते हैं। चिकनी सतह की अन्तः प्रद्रव्यी जालिकाएँ कम स्थायी होती हैं और थोड़ी क्षति पहुँचने पर ये पुटिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। इसके कार्य निम्नलिखित होते हैं -
(a) कोशिका के अन्दर अन्तः प्रदण्यीय जालिका कंकाल का कार्य करती हैं और उन्हें यान्त्रिक बल प्रदान करती हैं।
(b) यह केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य के बीच पदार्थों के आवागमन हेतु मार्ग प्रदान करती हैं।
(c) यह ग्लाइकोजन, लिपिड, कोलेस्टेरॉल तथा अनेक हॉर्मोनों के निर्माण तथा संग्रह से सम्बन्ध रखती है।
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प्रारूपी प्राणी कोशिका की अतिसूक्ष्म संरचना
(ii) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) : ये छड़ों, धागों एवं गोलों के आकार के रूप में कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। इनकी भित्ति दोहरी पर्त की तथा प्रोटीन एवं लिपिड की बनी होती है। इनकी संख्या भी कोशिकाओं की क्रिया के आधार पर पाँच से कई हजार तक हो सकती है। इनको सामान्यतः कोशिका का 'पावर हाउस' कहते हैं। इनके अन्दर भोजन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा उत्पन्न होती है जो शारीरिक क्रियाओं की पूर्ति में सहायक होती है।
(iii) गॉल्जी काय (Golgi- body) : इटली के न्यूरोलॉजिस्ट कैमिलो गॉल्जी (Camillo * Golgi, 1898) ने जन्तु कोशिकाओं में इसका अध्ययन किया था। ये रचनाएँ अधिकांश यूकैरियोटिक कोशिकाओं मुख्यतः स्रावी कोशिकाओं (secretory cells) में पायी जाती हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होती हैं। कोशिकाओं में यह केन्द्रक या सेण्ट्रोसोम के पास स्थित होती हैं। इसकी नलिकाओं में लिपिड या वसा की मात्रा अधिक होती है इसीलिए इन्हें लाइपोकॉण्ड्रिया (lipochondria) भी कहते हैं। पौधों की कोशिकाओं में इसे डिक्टियोसोम कहते हैं। इसके निम्नलिखित कार्य होते हैं -
(i) यह स्रावी स्वभाव की होती हैं और इनका मुख्य कार्य विभिन्न प्रकार के स्रावों (secretions) को उत्पन्न करना है।
(ii) डिक्टियोसोम के चारों ओर पायी जाने वाली गोल पुटिकाओं में कोशिका के उत्सर्जी पदार्थ (excretory substances) इकट्ठा रहते हैं। उत्सर्जी पदार्थों से भरी पुटिकाएँ (vesicles) परिधि की ओर चलकर दूषित पदार्थों को प्लाज्मा झिल्ली के बाहर निकाल देती हैं। इस क्रिया को एक्सोसाइटोसिस (exocytosis) कहते हैं। इस क्रिया में स्रावी पुटिकाओं की सीमान्त झिल्लियाँ प्लाज्मा झिल्ली से संयुक्त होकर उसका पुनर्नवीकरण (renovation) करती हैं।
(iv) राइबोसोम्स (Ribosomes) : यह कोशिकाद्रव्य में सघन अपारदर्शी कणों के रूप में पाये जाते हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ये गोल तथा चपटी रचनाओं के रूप में अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के चारों ओर व्यवस्थित दिखाई देते हैं। राइबोसोम में 40-60% RNA तथा शेष प्रोटीन होती है। इनका मुख्य कार्य कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करना है।
(v) लाइसोसोम्स (Lysosomes) : ये कोशिकाद्रव्य में 0.25um से 0.8um व्यास की गोल या अनियमित आकार की रचनाएँ होती हैं। सन् 1955 में डूवे (Duve) ने इन रचनाओं का नाम लाइसोसोम रखा। प्रत्येक लाइसोसोम एक तरल द्रव से युक्त खाली स्थान के रूप में होता है जो चारों ओर से लाइपोप्रोटीन के एक स्तरीय आवरण से घिरा रहता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल आदि के लिए विभिन्न पाचक एन्जाइम भरे रहते हैं। इसीलिए इसके कार्य निम्नवत हैं-
(a) कोशिका अवयवों के पाचन हेतु एन्जाइमों का संग्रह करना तथा प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट का पाचन करना।
(b) जन्तु कोशिकाओं में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया व अपशिष्ट पदार्थों का भक्षण करके नष्ट करना।
(vi) सेण्ट्रोसोम (Centrosomes) : यह गोलाकार रचना है जो कोशिका में केन्द्रक के पास स्थित होती है। इसी के मध्य में प्रायः दो सूक्ष्म रचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें सैण्ट्रि ओल्स (centrioles) कहते हैं। ये कोशिका विभाजन के समय मुख्य कार्य करते हैं।
(vii) माइक्रोसोम्स (Microsomes) : ये अन्तः प्रद्रव्यी जालिका की नलिकाओं के कट जाने या टूट जाने से बनते हैं और छोटे-छोटे पुटिकाओं (vesicles) के रूप में कोशिकाद्रव्य में बिखरे दिखाई पड़ते हैं। इनकी झिल्ली लाइपोप्रोटीन की बनी होती है जिस पर राइबोसोम के कण पाये जाते हैं।
(viii) प्लास्टिड्स (Plastids) : ये मुख्यतः पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं लेकिन कुछ जन्तुओं जैसे यूग्लीना (Euglena) में भी पाये जाते हैं। ये अनेक रंगों तथा आकृतियों के होते हैं। रंगहीन प्लास्टिड को ल्यूकोप्लास्ट तथा रंगीन को क्रोमोप्लास्ट कहते हैं। क्रोमोप्लास्ट में सबसे महत्वपूर्ण हरे रंग के क्लोरोप्लास्ट होते हैं जो पौधों में भोजन के निर्माण में सहायक होते हैं।
(ix) सूक्ष्मनलिकाएँ (Microtubules) : ये नलिकाएँ लगभग 200À व्यास की होती हैं और स्वतंत्र गतिशील अवस्था मंर कोशिका के कोशिकाद्रव्य में पायी जाती है। ये जन्तु तथा पादप कोशिकाओं में पायी जाती हैं। ये कोशिका के आकार को स्थिर रखने में व कोशिका के अन्दर विभिन्न परिवर्तनों में विशेष महत्व रखती हैं। कोशिका विभाजन के समय ये स्पिन्डिल का निर्माण करती हैं। इसके अतिरिक्त सूक्ष्मनलिकाएँ सेण्ट्रोसोम, फ्लैजेला तथा सीलिया का भी निर्माण करती हैं।
(x) पक्ष्माभिका या कशाभिका (Cilia or Flagella) : अनेक कोशिकाओं में धागे के समान छोटी तथा बड़ी संरचनाएँ पायी जाती हैं। छोटी संरचनाओं को पक्ष्माभिका तथा बड़ी संरचनाओं को कशाभिका कहते हैं। ये दोनों संरचनाएँ प्लाज्मा झिल्ली के नीचे स्थित बेलनाकार कणों से जुड़ी रहती हैं। .जिन्हें आधारकाय (basal bodies) कहते हैं।
2. मेटाप्लास्ट या कोशिकाद्रव्य की अजीवित संरचनाएँ (Metaplast or Non-living Structures of Cytoplasm) : कोशिकाद्रव्य में पायी जाने वाली अजीवित रचनाएँ निम्नलिखित होती हैं -
(i) रिक्तिकाएँ (Vacuoles) : अनेक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में गोल एवं खोखले स्थान वाली कुछ रचनाएँ उपस्थित होती हैं जिन्हें रिक्तिकाएँ कहते हैं। ये चारों ओर से प्लाज्मा झिल्ली के समान रिक्तिका झिल्ली (vacuolar membrane) के द्वारा घिरे रहते हैं। इनमें जल, अकार्बनिक लवण तथा विभिन्न प्रकार के कार्बनिक लवण पाये जाते हैं। इनका मुख्य कार्य खाद्य पदार्थों का संचय तथा उन्हें कोशिका के अन्य भागों तक ले जाना है। ये जन्तु कोशिकाओं की अपेक्षा वनस्पति कोशिकाओं में अधिक पायी जाती हैं।
(ii) आयल बिन्दु एवं क्रिस्टल्स (Oil Droplets and Crystals) : कोशिकाद्रव्य में कुछ आयल बिन्दु एवं कुछ सूक्ष्म कणों के रूप में क्रिस्टल्स पाये जाते हैं। ये कोशिका के अन्दर ऊर्जा के संचित स्रोत का कार्य करते हैं।
(iii) अन्य कोशिकाद्रव्यी अन्तर्वेश (Other Cytoplasmic Inclusions) - कोशिकाद्रव्य में अनेक प्रकार के कार्बनिक पदार्थ जैसे स्टार्च, ग्लाइकोजन तथा प्रोटीन आदि अजीवित पदार्थों के रूप में पाये जाते हैं।
केन्द्रक (Nucleus) : यह कोशिका का सबसे महत्वपूर्ण अंगक (organelle) है जो प्रत्येक जीवित यूकरियोटिक कोशिका के जीवद्रव्य में पाया जाता है और कोशिका की सभी जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता है। इसकी आकृति प्रायः कोशिका के आकार के अनुरूप जैसे गोल, प्लेटनुमा पिण्डाकार, लम्बी, अण्डाकार या फीते के समान होती है। एक कोशिका में प्रायः एक ही केन्द्रक होता है, लेकिन कुछ कोशिकाओं में दो या दो से अधिक केन्द्रक पाये जाते हैं। केन्द्रक में निम्नलिखित भाग पाये जाते हैं -
(i) केन्द्रक झिल्ली (Nuclear Membrane) : केन्द्रक के चारों ओर लाइपोप्रोटीन की बनी तथा छिद्रित (perforated) दोहरी इकाई झिल्ली पायी जाती है जिसे केन्द्रक झिल्ली कहते हैं। इसमें पाये जाने वाले छिद्रों के कारण कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रकद्रव्य एक-दूसरे से सम्बन्धित रहते हैं।
(ii) केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm) : केन्द्रक के अन्दर एक तरल पदार्थ होता है जिसे केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm or karyolymph or nuclear sap) कहते हैं। इसका संगठन कोशिका के कोशिकाद्रव्य के संगठन से मिलता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक रहती है, जिसमें केन्द्रिका (nucleolus), केन्द्रक जालिका (nuclear reticulum) तथा न्यूक्लियोप्रोटीन कण तैरते रहते हैं।
(iii) केन्द्रिका (Nucleolus) : केन्द्रक के अन्दर एक या कई गोल रचनाएँ पायी जाती हैं। जिन्हें केन्द्रिका कहते हैं। केन्द्रिका में 10% RNA, 85% प्रोटीन एवं 5% DNA होता है। केन्द्रिका के चारों ओर कोई कला नहीं होती है। केन्द्रिका का मुख्य कार्य राइबोसोम उपइकाइयों का निर्माण करना है। क्योंकि इसमें राइबोसोम के निर्माण सम्बन्धी सभी प्रोटीन, एन्जाइम तथा RNA संग्रहित होते हैं।
(iv) केन्द्रक जालिका (Nuclear Reticulum): केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन के धागे पाये जाते हैं जो आपस में उलझकर जाल जैसी रचना बनाते हैं। इसे केन्द्रक जालिका या क्रोमेटिन जालिका कहते हैं। जब कोशिका इण्टरफेज अवस्था में रहती है और उसके अन्दर उपापचयी क्रियाएँ अपनी चरम सीमा पर होती हैं तो केन्द्रक जालिका कम स्पष्ट दिखाई पड़ती है, परन्तु विभाजन प्रारम्भ होने के कुछ पहले यह स्पष्ट हो जाती है।
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